कार्तिक पूर्णिमा को भारत में कई तरीको से मनाया जाता है| हिन्दू, जैन और सिख धर्मो में अलग अलग नामो से जाने वाले इस दिन का महत्त्व काफी ज्यादा है| इस दिन अगर पुष्कर में पुष्कर मेले का उद्धघाटन होता है तो वहीँ सिख धर्म इसको गुरुपरब के नाम से मनाता है| जैन धर्म के अनुयायी इस दिन पाटलियना जा कर शत्रुंजय पर्वत की यात्रा शुरू करते हैं और तमिलनाडु में 10 दिवसीय कार्तिक दीपम की शुरुआत करते हैं|
मेरे लिए कार्तिक पूर्णिमा का एक ही मतलब है| 2014 से मैंने हर साल वाराणसी जा कर देव दीपावली में भाग लिया है| ये पर्व की अहमियत मेरे लिए बड़ी अजीब सी है| पहली बार जब मैने बनारस के घाटों को दियो से सुसज्जित पाया तब मेरे पास उस खूबसूरती को दिखाने का कोई माध्यम नहीं था| अगले साल एक छोटा कैमरा ले कर गया लेकिन वो भी इस चकाचौंध के सामने कम पड़ गया| साल दर साल मैंने ये कोशिश करी है की मै एक यहाँ अच्छा फोटो ले पाऊ मगर किसी न किसी कारणवश वो इच्छा ही पूरी नहीं हुई|
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अगर आपको लग रहा है की 2016 की देव दीपावली में मेरी ये इच्छा पूरी हुई होगी तो आप गलत है|
देव दीपावली के दिन वाराणसी के घाटों को दियो से सुसज्जित किया जाता है| इस दिन रावदास घाट से ले कर अस्सी घात की शोभा देखते ही बनती है| ऐसा माना जाता है की इस दिन देवी देवता धरती पर उतर कर गंगा में स्न्नान करते हैं|
2016 में मैंने फाइनली माइंड मेकअप कर लिया की इस साल तो अपने नए DSLR का जलवा यहाँ दिखा कर आऊंगा| किस्मत ऐसी की वाराणसी जाने के एक हफ्ते पहले मेरे कैमरे की शटर स्पीड पगला गई और मुझे उसे सर्विसिंग सेंटर देना पड़ा| कहा तो यूँ गया था की वाराणसी जाने के पहले मेरा कैमरा मेरे हाथ में होगा, लेकिन किस्मत का कमाल बोले या मेरी आलस का नतीजा, जिस दिन मै अपना कैमरा लेने पंहुचा उस दिन सर्विस सेंटर ही बंद पड़ा मिला|
Dev Dipawali Banaras – Celebrating Dipawali With The Gods
अगले दिन ट्रैन थी, देव दिवाली के लिए बनारस पहुंचना था| कुढ़ते हुए और सर्विस सेंटर वालो को गलियाते हुए हम बनारस पहुंच गए|
देव दिवाली के दिन घाटों को सजाने का काम एक दिन पहले ही शुरू हो जाता है| सुबह सुबह घाटों पर लड़किया रंगोलिया बनाना शुरू कर देती है| हर घाट की एक अलग रंगोली होती है| इस काम में विदेशो से आई लड़किया भी शामिल हो जाती है| उनके लिए तो ये भी incredible India का एक unique experience है|
मै शाम को घाट का एक छोटा सा जायज़ा लिया और फिर अँधेरे होने का इंतज़ार करने लगा| यूँ तो घाट पर दिए शाम 6:30 से जलने शुरू हो जाते हैं मगर दशवमेद्य घाट और उसके आस पास का नज़ारा देखते ही बनता है| इस घाट से थोड़ा आगे आन्ध्रा प्रदेश के घाट पर बड़े बड़े हुमाद दान में घी और कपूर डाल कर जलाया जाता है और ये सबसे अलग सा द्रिश्य होता है|
इस देश में फोटोग्राफर्स की कमी नहीं है| देव दिवाली के दिन ये बात शत प्रतिशत साबित हो जाती है| दूर दूर से लोग भतेरे स्टाइल के कैमरे और स्टैंड्स उठा कर एक जगह से दूसरी जगह भाग रहे होते है| बेचारो को ये नहीं पता होता है की जितनी भीड़ यहाँ घाटों पर होती है उतनी भीड़ तो shoppers stop के end of season पर भी नहीं होती| भीड़ इतनी की tripod रखो तो चार लोग आ कर टकरा जाए| एक महोदय काफी देर एक कोने में से खड़े timelapse बनाने के attempts पर attempts मारे जा रहे थे| कभी कोई बच्चा tripod में धक्का मार देता था कभी उनके कमरे पर मक्खी आ कर बैठ जा रही थी| अंत में महोदय चिढ़ते हुए बोले, ‘This city is not friendly towards photographers.’ पसीने से तर बतर, फोटोग्राफर महाराज लोगो को गालिया देते हुए चलते बने|
अब हम दश्वमेध घाट की और बढ़ ही रहे थे की एक बंगाली सज्जन गले में दो कैमरा लटकाए मिल गए| भीड़ और गर्मी में उनकी हालत टाइट हो रही थी| मैंने मज़े मज़े में पूछ लिया की कुछ अच्छा शॉट मिला तो दिखाओ| उन्होंने में मेरा छोटा सा कैमरा देखा और ऐसी शकल बनाई जैसे किसी ने उनके जायदाद का हिस्सा मांग लिया हो| सर कुछ बुदबुदाते हुए चल दिए|
देव दिवाली के दिन दशवमेध घाट पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है| यहाँ संगीत समारोह और आतिशबाजी का कार्यक्रम होता है, इस वजह से यहाँ सबसे ज्यादा भीड़ होती है| यहाँ से आगे बढ़ना अँधेरी के ट्रैफिक जैम में फंसने की तरह है| एक बार फंसे तो फिर बहार निकलना मुश्किल| ऊपर से जेबकतरो का सबसे ज्यादा प्रकोप भी यहीं पर मिलता है| लोकल लोगो को गलियों के अंदर का रास्ता काफी अच्छे से पता होता है| मणिकर्णिका घाट के अंदर से आप दश्वमेध घाट को फलांग कर सीधा मुंशी घाट निकल सकते हैं|
रात आठ बजते बजते घाटों के दिए बुझने लगते हैं| लोग धीरे धीरे अपनी घरो की और प्रस्थान करते हैं| हम मुग़लसराय स्टेशन निकल जाते हैं| दिल्ली जाना है, सुबह ऑफिस है| पता चलता है ट्रैन आठ घंटा लेट है| रेलवे स्टेशन पर फ्री wifi है| टाइम काट जाएगा ये सोच कर हम विश्राम गृह में बैठ जाते हैं|
मैंने इस साल भी देव दिवाली की फोटोग्राफी बिना DSLR के की| शायद गंगा मैया भी जानती है की एक बार इसे ढंग की फोटो मिल गई तो ये लड़का यहाँ आना बंद कर देगा| अब माँ को तो वापस बुलाने का बहाना चाहिए ना|
अगले साल देव दिवाली में वापस आना होगा|
बहुत ही सुंदर विवरण, अलग था , touristic नहीं था , आत्मीय था, और भी मज़ा आया पढ़ कर. प्रभु आपके DSLR को जल्द ही सही कर दे और आप फिर से घाट जा सके