ट्रैकिंग अर्थात पर्वतारोहण मेरे सबसे निचे की प्राथमिकताओं में आता है| पहाड़ चढ़ना मुझे तब तक नाकारा है जब तक मै ये पक्का न कर लू की भैया ये रास्ता वहीँ जाता है जहाँ मुझे जाना है| इस चक्कर में मै दो तीन बार रास्ता भटक कर जंगलो का रास्ता नाप चूका हूँ| हिमालयन ट्रेक रुट्स के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है की जहाँ वेस्टर्न घाट में आपको इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिल जाता है, हिमालयन ट्रेक्स में शायद वो अनुभव काम हो जाता है|
पिछले साल बर्फ कम गिरी, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदुषण ने मौसम की हालत खस्ता कर दी| बड़ी मुश्किल से मैंने एक पराशर लेक ट्रेक का प्लान बनाया, वहां पंहुचा तो दूर दूर तक इतनी हरियाली मिली की लगा ट्रेक के बिच में टाइम ट्रेवल कर के मई के महीने में आ गया हूँ| मैं खखुआ कर रह गया, बर्फ तो देखनी थी अब कैसे भी देखु| मंडी आया तो दिल्ली के बदले हम सीधा शिमला निकल लिए| अब दूरी का अंदाज़ा तो था नहीं, मुझे शिमला की बस वाले ने सुबह 3:30 को बस स्टैंड पर पटक दिया| जाना था नारकंडा, पूछा तो पता चला की पहले बस 5 बजे सुबह चलेगी| बस स्टैंड पर शुरू हुआ चाय पर चाय का सिलसिला। थका हटा, एक ट्रेक की थकन ख़तम भी नहीं हुई थी की मेरे अंदर के पगले ने दूसरा ट्रेक प्लान कर लिया| किसी तरह से 5 बज गए, मुझे अभी भी कोई बस नहीं दिखी जो नारकंडा ले कर जाती हो|
शिमला बस स्टैंड पर दुकान वालो ने एक अच्छा साइड बिज़नेस खोल रखा है| 20 रूपए दो और एक घंटा मोबाइल चार्ज कर लो| अब हम ठहरे सोशल मीडिया ट्रवेलेर, अपनी हर हरकत की खबर अगर इंस्टाग्राम वालो को न दे तो लोग बुरा मान जाते है| सो बीस रूपए का फ़ोन रिचार्ज और साठ रूपए चाय पर उड़ाने के बाद जब पता चला की एक सांगला की बस में एक सीट खाली है और वो मुझे नारकंडा उतार देंगे तो ऐसा लगा जैसे जन्नत में पहुंच गया हूँ|
हिमाचल के बस वाले अपने दिन के पहले सफर पर भक्ति गाने लगते है| एक बार पूजा भक्ति हो गई तो हनी सिंह और बादशाह का आगमन होते देर नहीं लगती है| राधे राधे के भजन के साथ जब बस चली तो लगा जैसे नज़ारा किसी जन्नत से कम नहीं था| चारो ओर बादल और धुंध से ढंके गावो का दृश्य कुछ अलग सा ही लगता है| बुरा ये बस की जैसे जैसे शिमला से हम ऊपर उठे, बारिश का गिरना भी तेज़ हो गया| लगा की भाई, अब तो देख ली बर्फ|
जब तक नारकंडा पंहुचा तब तक 7:30 बज चुके थे| मुझे ट्रेक से पहले रहने की एक जगह ढूंढ़नी थी जो की मुझे मार्किट में ही मिल गई| 300 रूपए में एक छोटा सा कमरा जहाँ से उफनती हुई सतलज नदी और हरे भरे जंगल साफ दिख रहे थे, मेरे हवाले हो गया| थोड़ा आराम करने के बाद जब मैंने देखा की बारिश खतम हो गई है तो मै ट्रेक के लिए निकल लिया| 9 बज रहे थे और अगर अपनी सामान्य गति से चलने हिसाब किताब ले कर मैंने अंदाज़ा लगाया की मंदिर तक 1 बजे दुपहर तक पहुंच जाऊंगा|
हाटु मंदिर के ट्रेक के लिए एक रास्ता, सांगला वाले रस्ते से कटता है| ये पक्की सड़क आराम से आपको मंदिर तक पहुंच देती है| एक घंटा चलने और दो लल्लू बाइक वालो से बचने के बाद मै एक छोटे से झोपड़े के पास पंहुचा| यहाँ शायद वो चरवाहे रात में रुकते होंगे जो अपनी बकरियों को गर्मियों में चराने आते है| पास में एक छोटा सा झील था और यहाँ से बर्फ शुरू हो गई| झील के चारो औरबर्फ की मोटी सी चादर पड़ी थी और साथ में पड़े थे ओल्ड मोंक के कुछ बॉटल्स| काफी शान से लोगो ने यहाँ पर गंदगी फैलाई थी| थोड़ी सेल्फी लेने के बाद हाटु माता मंदिर के लिए हम आगे बढ़ गए और इसी के साथ रस्ते से भटक भी लिए|
एक पक्का रास्ता अगर आपको सीधा आपके मंज़िल तक ले जाए तो उसको भूलना एक कला ही हो सकती है| मैंने सोचा की मुझे एक जंगल के बिच से शॉर्टकट लेना चाहिए, इस से मै उपर की तरफ पहुंच जाऊंगा| लेकिन मेरी किस्मत देखो, मै जंगल में भटक गया और रस्ते के बदले मै उसी धुंदले पेड़ो के बीच घूमने लगा|
लगभग आधा घंटा बर्बाद करने के बाद मुझे खतरे का अंदाज़ हुआ| अक्सर ऐसे जंगलो में भेड़िये और शिकारी कुत्ते आराम से मिल जाते हैं, किस्मत अच्छी हुई तो एक आधा भालू भी आपको नाश्ता बनाने से परहेज़ ना करेगा| लेकिन हमने भी काफी ट्रेवल ब्लोग्स पढ़ रखे थी और अगर इंटरनेट बोलता है की धुप की रौशनी के तरफ चलते रहो तो बात सही ही होगी| आखिर होब्बिट में भी तो द्वारवस की सेना ऐसे ही मकोड़ो के जंगल से बाहर निकली थी| दिक्कत ये थी की धुप थी ही नहीं|
तो भाई हम थोड़ा आगे बढे थी की कुत्तो की भौकने की आवाज़ आने लगी| आखो से सामने वो सारे न्यूज़ रिपोर्ट्स दिखने लगे जहाँ हिमाचल में ट्रॅक्केर्स की लाश मिलने की खबर छपी थी| भैया, अभी तो इंस्टाग्राम पर इतनी फोल्लोवेर्स भी नहीं हुए है मेरे की मेरे लिए कोई डेडिकेशन पेज बने| कुत्तो की आवाज़ करीब आती गई और थोड़ी देर में एक छोटा सा पहाड़ी कुत्ता आ कर मेरे पैरो में लोटने लगा| कसम से ये भयानक जानवर तो दो पार्ले जी बिस्कुट में ही मान गया| पता चला की साहब एक चरवाहे के साथ थे और बर्फ में तफरीह मार रहे थे|
चरवाहे साहब ने मुझे चार बातें सुनाई और फिर रस्ते पर ला कर छोर दिया| बदल आ गए थे और आगे बढ़ने का मतलब था की पक्का भीगोगे| सो हम हाटु माता के दर्शन किये बिना ही निचे लौट आए| रस्ते में एक गाड़ी वाले भैया से लिफ्ट ले कर वापिस अपने नारकंडा में अपनी आश्रय में जा कर दो आलू के पराठे दबा कर मज़े से जो सोया वो अगली सुबह 3 बजे ही उठा|
ऊ का बोलते हैं अंगेरजी में, मोरल ऑफ़ थे स्टोरी; भैया रास्ता सीधा हो तो ज्यादा तेज़ी नहीं दिखानी चाहीए|
That is such a tragedy. But, I must say those pictures are so beautiful, just loved them.
Thank you Twinkle
These experiences teach us a lot…and truly this is life… great pics and a wonderful post…thanks for sharing
Hey Niharika,
Thanks for dropping by and I totally agree with you
Such beautiful pictures! They really bring you into the moment. Thanks for sharing.
Yes, the trip is indeed, memorable.