रामायण में बताया गया है की श्री रामचंद्र और उनकी वानर सेना ने जब लंका की और प्रस्थान किया तो सामने विशाल समंदर ने उनका रास्ता रोक दिया| लाख मानाने, समझाने के बाद भी समुद्रदेव अरविन्द केजरीवाल की तरह अड़े रहे की वो ना अपनी लहरें शांत करेंगे ना उनकी सेना को आगे बढ़ने देंगे| रामचंद्र ने आखिरकार हार मान कर समुद्र को श्राप दे दिया की उनकी क्षमता हमेशा के लिए कम हो जाएगी| समुद्रदेव की हालत इंग्लिश में ‘I told you so wali ho gai’ हार मान कर श्री राम के सामने उपस्थित हुए, अपने केजरीपने के लिए क्षमा मांगी और उनकी सेना को लंका जाने का रास्ता दे दिया| इस रास्ते पर पूल बना कर लंका आक्रमण हुआ और भीषण युद्ध के बाद राम और सीता का पुनर्मिलन हुआ|
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अब इस कहानी में कितनी सत्यता और कितनी मिथ्यता है वो तो राम ही जाने, मगर जिस जगह रामचरितमानस के इस भाग को लिखा गया वो जगह आज भी मौजूद है| रामेश्वरम से 15 किलोमीटर आगे, धनुषकोडी नाम का एक गुमनाम, सुनसान गांव है जहाँ इंसानो का नामोनिशान देखने को नहीं मिलता| यहाँ बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर का मिलन होता है और जाफना की दूरी बस 15 किलोमीटर है| आए दिन यहाँ से भारत और श्री लंका के मछुआरों को बिना बात उलटे तरफ की सेना पकड़ कर जेल में बंद कर देती है और कभी कभी साल भर तक वापस नहीं जाने देती|सो कॉल्ड रामसेना द्वारा निर्मित रामसेतु भी इसी जगह पर मौजूद है जिसको राइट विंगेर्स भारतीय सभ्यता का एक अटूट हिस्सा बताते हैं तो लिबरल बंधू इसको कोरल रीफ बताते हैं| अब कौन सही है और कौन गलत लेकिन दोनों अपनी अपनी धारणाओं के द्वारा एक दूसरे की मिटटीपलीद करते रहते हैं|
सं 1964 तक धनुषकोडी एक फलता फूलता मछुआरों का गांव हुआ करता था| उस साल आए एक तूफान ने इस गांव को उजाड़ दिया और साथ में इस गांव को रामेश्वरम से जोड़ने वाला रेलवे ट्रैक, ट्रैन और उसके डब्बे तक उड़ा कर ले गई|इस साल के पहले तक धनुषकोडी और श्री लंका के तलाईमन्नार के बिच फेरी सर्विस भी चलती थी जो तूफान में तबाह हो गई| उन दिनों इस शहर में एक रेलवे स्टेशन, चर्च, एक छोटा रेलवे हॉस्पिटल, पोस्ट ऑफिस, कस्टम ऑफिस और पोर्ट ऑफिस भी थे| जो तीर्थयात्री अपनी चारधाम यात्रा पूरी करने के लिए रामेश्वरम आते थे उनके लिए छोटे छोटे होटल और गेस्ट हाउस बने हुए थे| आज इस जगह की हालत देख कर लगता नहीं की यहाँ कोई रहा होगा| दूर दूर तक रेत और उसके आगे विशाल समंदर एक अजीब से सन्नाटे का एहसास दिलाते हैं| कहा जाता है की जिस रात धनुषकोडी में तबाही मची उस रात समंदर में 8 यार्ड ऊँची लहरें उठी थी| इस आपदा में कुछ 1500 लोगो की जान गई थी, तूफान से पम्बन पूल तक तबाह हो गया था| कर लोगो ने रामेश्वरम मंदिर के अंदर शरण ले कर अपनी जान बचाई थी|
धनुषकोडी से मेरा परिचय कन्याकुमारी में हुआ था| सोलो ट्रवेलेर जान कर काफी लोग आपसे आपका अनुभव जानने के लिए आ जाते हैं| ऐसे बस स्टैंड पर IIT चेन्नई के कुछ स्टूडेंट्स से मेरी बात होने लगी| बात भी क्यों शुरु हुई क्युकी उनको एक छोटा सा सवाल पूछना था| ‘तुमी बांगाली?’ मै चाहे भारत के किसी भी कोने चला जाऊं, मेरी अनजान लोगो से बातचीत बस इसलिए शुरू होती है क्युकी उनको लगता है की मैं बंगाल से हूँ| बात बात में पता चला की एक घंटे बाद की बस मुझे भारत श्री लंका बॉर्डर के पास उतार देगी| एक ने अपनी एक फोटो दिखाई जहाँ उसके फ़ोन में श्री लंका के इंटरनेशनल रोमिंग मैसेज आने लगे थे| फिर क्या था, पॉण्डीचेर्री की बस को गोली मार हम रामेश्वरम की बस में बैठ गए और सुबह सुबह पहुंच गए श्री राम की तपभूमि में|

धनुषकोडी रामेश्वरम से 20 मिनट की दूरी पर है| रामेश्वरम से चलती बस आपको धनुषकोडी बीच पर उतार देती है| टूरिस्टो से भरे इस गन्दे से बीच को काफी लोग असली जगह समझ कर लौट जाते हैं| लेकिन यहाँ से असली धनुषकोडी आधे घंटे की दूरी पर है| आपको छोटी छोटी बसें, बीच के बाहर लगी मिलेंगी जो सीधा इस गांव के अंदर ले कर जाती हैं| जब ये बस समंदर से पार होती है तो लगता है की अब गए के तब गए, लेकिन ड्राइवर आराम से बस कट मारता हुआ निकल लेता है| स्टॉप पर पहुंच कर हमें घूम कर वापस आने के लिए एक घंटे का टाइम मिलता है|

सफ़ेद रेत में चलते हुए हम समंदर की ओर बढ़ते हैं| यहाँ कई सारे मछुआरों के बोट एक लाइन से लगे हुए हैं| पीछे देखो तो हर तरफ खंडहर ही खंडहर दिखाई देते हैं| 1964 की आपदा के बाद इस गांव को uninhabitable घोषित कर दिया गया था| फिर भी यहाँ कुछ 200 लोग अस्थाई तौर पर रहते हैं जो मछली पकड़ते हैं, बोट की मरम्मत करते हैं और छोटी मोटी दुकाने चलाते हैं|
धनुषकोडी की महिलाये एक खास तरीके से पानी लाती हैं| बंगाली की खाड़ी और हिन्द महासागर के समागम स्थल पर मीठे पानी की छोटी छोटी झीले निकल आती है| यहाँ से धनुषकोडी में पीनी का पानी आता है| अगर ये झील नहीं भी हो तो थोड़ी से रेट हटाने पर मीठा पानी अपने आप बाहर आ जाता है| इस पानी को एक कपडे से छान कर घड़े में भर लिया जाता है|
धनुषकोडी का सन्नाटा दिल में दर्द सा पैदा करता है और साथ में एक अजीब से शांत वातावरण में ले जाता है| यहाँ आ कर ऐसा लगता है जैसे भूत भविष्य और वर्तमान एक जगह पर आ कर बैठ गए हो| ये एक ऐसी जगह है जहाँ जा कर आप मिथ्य को तथ्य से अलग करने में शंघर्ष करने लगते हैं| इतनी शांति कैसे इतनी बड़ी तबाही को जनम दे सकती है, ये सोचने वाली बात है|
A small guide to visit Dhanushkodi
How – Rameshwaram is connected via major towns of Tamilnadu and even Bangalore. Buses for Dhanushkodi run at regular intervals from the temple area. You’ll have to take a shared minibus for the ride further into the ghost town.
Stay – Rameshwaram has a lot of guest houses depending on your budget.
Points to Note – Rameshwaram is one of the hottest places in India. Keep sipping water, coconut water and badam milk to prevent dehydration and exhaustion.
People in Rameshwaram will tell you that without doing puja in main temple your visit will not be complete. Until unless you are highly religious only then you should pay your offerings in the temple.
bahut achcha vivran hai…… the place has so many stories hidden….. a barren land but talking…..
Dhanyawad @Sudhir 🙂