एक बार कोंकण रेलवे से जाते वक्त धड़ धड़ की आवाज़ से मेरी नींद खुल गई| बहार देखा तो एक विशाल जलप्रपात सीधा ट्रेन के सामने उमड़ रहा था| अगल बगल देखा तो सारे यात्री मुँह फाड़ उस भव्य नज़ारे को देख रहे थे| ट्रेन आगे बढ़ चली लेकिन वो दृश्य मन में अटक सा गया|
इस घटना के दो तीन साल बाद बज़फ़ीड का आगमन हुआ| एकाएक इंटरनेट की दुनिया ’30 places you need to travel before your turn 30′ टाइप आर्टिकल्स से भर गई| एक दो आर्टिकल्स पढ़े तो पता चला की ये दूधसागर वॉटरफॉल है और गोवा के पास स्थित है| बस फिर क्या था, हमे भी कीड़ा हो गया की 30 के पड़ाव को पार करने के पहले यहाँ तो जाना ही है|
2014 में मुझे युथ हॉस्टल के साथ पहली बार दूधसागर ट्रेक करने का मौका मिला। 5 दिन का ये ट्रेक गोवा से कर्नाटक की ओर जाता है और दूधसागर एक बेस है जहाँ से हम ऊपर चढ़ना शुरू करते हैं| दिसंबर का महीना था, दूधसागर अपने विशाल रूप को छोड़ एक पतली सी धारा में बदल चूका था| भरोसा ही नहीं हुआ की ये वही जलप्रपात है जिसने ट्रेन के अंदर सबको भीगा दिया था| मन में कुढ़ते हुए मैंने बाकि की यात्रा ख़तम की| गोवा कर्नाटक ट्रेक वेस्टर्न घाट के अंदर से जाता है| इस रस्ते की खूबसूरती ने मेरे मन का मलाल कुछ हद तक दूर तो किया लेकिन दूधसागर को उस विशाल रूप में दुबारा देखने की इच्छा कुलकबुलाहट मारती रही|
Trekking in Western Ghats – Part 1
Trekking in Western Ghats – Part 2
गोवा के तरफ बरसात का महीना थोड़ा जल्दी आ जाता है| इस सीजन में सैलानी कम जाते हैं लेकिन गोवा की खूबसूरती देखते ही बनती है| पूरा राज्य हरा भरा हो जाता है, एक अलग ही छवि निखर कर सामने आती है जो किसी का भी मन मोह ले| ज़ाहिर सी बात है की ये सितम्बर के बाद आने वाले तूफान की ख़ामोशी है जब भीड़ देख कर पता ही नहीं चलता की आप गोवा में है या गुडगाँव में|
मन में ठान रखा था की इस बार तो दूधसागर का मानसून ट्रेक करना ही है| कैसे करना है इसका आईडिया नहीं था| इंटरनेट ने भी बस कन्फ्यूज़न क्रिएट करने के अलावा कुछ ना किया| आधे साइट्स ये बता रहे थे की ट्रेक बैन हो चूका है, तो कुछ का कहना था की रास्ता खुला हुआ है| हमने सोचा की अब छोड़ो, वहां चल कर ही देखा जाएगा की ट्रेक हो सकता है या नहीं| फटाफट दिल्ली से टिकट करवाई, वहां बैठे दोस्तों को बताया और पहुंच गए हम गोवा|
दूधसागर ट्रेक करने के लिए मडगाव से कुलेम स्टेशन के लिए ट्रेन करनी होती है| पहले कुलेम से दूधसागर का ट्रेक पटरियों के रस्ते जाता था| एक दो एक्सीडेंट्स के बाद उस ट्रेक पर बैन लगवा दिया गया| हमलोग जब कुलेम पहुंचे तो पता चला की पटरियों के रस्ते किसी को भी आगे जाने नहीं दिया जा रहा है| फटाफट हमारा प्लान बदल गया, मैंने और अनुज ने जंगल के रस्ते ट्रेक करने का फैसला किया|
दूधसागर वॉटरफॉल का शॉर्टकट भगवान महावीर अभ्यारण्य से हो कर जाता है| कहने को तो ये ट्रेक का रास्ता पांच किलोमीटर छोटा कर देता है मगर साथ साथ रास्ता भी मुश्किल कर देता है| महावीर अभ्यारण्य और वेस्टर्न घाट दुर्लभ सांपो का घर है और किंग कोबरा खासतौर से इन जंगलो में पाया जाता है| हमने अभी चलना शुरू ही किया था की बारिश होने लगी| सर छुपाने की जगह नहीं, सांपो से भरे इस जंगल में पेड़ के नीचे बैठना समझदारी नहीं लगी| मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी, हमने अपनी दांडी यात्रा चालू रखी| रास्ते की खूबसूरती आपको बोर नहीं होने देती| थोड़ी थोड़ी दूर पर दूधसागर नदी आपके साथ चलती है, उसके बाद पेड़ो के झुरमुट से वेस्टर्न घाट की पहाड़िया आपको नज़र आने लगती है| पहाड़ पर मंडराते बादल एक पल को आपको हिमालय की याद दिला देते हैं, लेकिन फिर पता चलता है की अब नदी के बीच से एक पतली सी रस्सी पकड़ कर आपको आगे जाना है| रस्सी टूटी, बैलेंस बिगड़ा और आप सीधा पंजिम में मिलेंगे| नदी पार करने पर अंदाज़ा होता है की मुझे अपनी ज़िंदगी से कितना प्यार है| साला, एक मोमेंट में पूरी डेयरडेविलगिरि निकल जाती है|
हम धीरे धीरे अपनी मंज़िल के करीब आते गए, कुछ दूरी से वॉटरफॉल की झलकियां भी मिलने लगी| रुक रुक कर बारिश होती रही, हम चलते रहे, एक वक्त के बाद रेनकोट भी हार मान गया| अच्छी बात ये थी की वॉटरफॉल की आवाज़ तेज़ होती गई| मन में सोचा की अब मुश्किलें ख़तम होने को आई, फिर खुद को कोसा की ऐसे ख्याल आते ही क्यों है|
हम अपनी मजिल से आधा किलोमीटर दूर है, सामने एक व्यूपॉइंट है जहाँ से मूसलाधार फुल फॉर्म में दूधसागर नज़र आ रहा है| मन में फिर से कुढ़न मचने लगी की इतनी दूर हम ये देखने के लिए आये हैं| इतनी देर में अनुज ने बताया की कोने से एक रास्ता वॉटरफॉल के अंदर जाता है| मेरे साथ आए दूसरे हाईकर्स उस तरफ जाने लगे|
मैंने वो रास्ता देखा तो मेरे होश उड़ गए|
पूरा रास्ता एक तरफ और वॉटरफॉल के अंदर जाने का रास्ता एक तरफ| बारिश की वजह से दूधसागर में बाढ़ आती है और वॉटरफॉल फ़ैल कर काफी आगे तक आ जाता है| दिसंबर 2015 में इस जगह पर लोग अपनी गाड़ियां पार्क कर रहे थे वो जगह आज कंधे तक पानी में डूबी हुई थी| एक स्टील की रस्सी थी जिसको पकड़ कर हमे आगे बढ़ना था| मरता क्या ना करता, कमर कसी और पहुंच गए हम नदी के उस पार|
’30 places before you turn 30′ लोग ऐसे ही नहीं बोलते| सामने दूधसागर पूरा मदमस्त हो कर गिर रहा था| थोड़े से पल के लिए लगा की प्रकृति का सारा सौंदर्य बस यहाँ उमड़ कर आ गया है| चारो तरफ हरे भरे पहाड़ और बीच में ये अनूठा नज़ारा|
ऊपर पुल से एक ट्रेन जाती हुई दिखी, कोई आज भी अंदर से देख कर सोच रहा होगा की 30 पार करने के पहले यहाँ आना है|
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रोमांचकारी यात्रा,,, पढ़कर मजा आया