आज से कुछ महीने पहले अगर कोई मुझसे पंजाब के बारे में मेरी राय मांगता तो मै उसे वही जानकारी देता जो मुझे यश चोपड़ा की फिल्मो से प्राप्त हुई थी। दूर दूर तक सरसो के खेत और उस खेत में किसी रोमांटिक गाने पर नाचते शाहरुख़ खान और काजोल। वैसे मैं कई बार पंजाब गया, कभी कभार हिमाचल के रस्ते में मुलाकात भी हुई, हाय हेल्लो कर के हम आगे निकल लिए और वो वहीँ खड़ा इंतज़ार करता रह गया। अमृतसर जा कर भी किसी टूरिस्ट लोकेशन जैसा ही अनुभव हुआ। कभी ये समझ नहीं आया की असल में पंजाब दिखता कैसा है। ये कौन सी मिटटी की खुशबु है जिसकी बात कनाडा में बसें NRI करते है। कैसा लगता है असली पंजाब और हैं कहाँ पर ये जगह।
किसी भी राज्य, संस्कृति के दो पहलु होते हैं। एक जो बाहर वालो को दिखाने के लिए होता है और दूसरा जो बाहर वाला देख नहीं पाता। घर में जब मेहमान आता है तो उसको हमेशा सजा धजा ड्राइंग रूम ही दिखाया जाता है, बच्चो का वो बैडरूम जहाँ किताबे और कपडे बेतरतीब ढंग से फेंके हुए होते हैं वहां तक का रास्ता मेहमान तय ही नहीं कर पता। बस ये सोचता हुआ चला जाता है की वाह क्या क्लासी लोग रहते हैं यहाँ, अगले बोनस से मैं भी 55 इंच वाली टीवी लूंगा। बस ऐसी ही इम्प्रैशन थी पंजाब की भी। Well maintained सड़को और smart city के पार भी कोई पंजाब होगा, ये देखने की इच्छा न जाने कब से ज़ोर मार रही थी।
किला रायपुर से मेरा परिचय MTV और उसके बाद आमिर खान की दंगल ने करवाया। Sound Trippin के एक एपिसोड में स्नेहा खनवलकर ने किला रायपुर जा कर वहां के रूरल ओलंपिक्स को शूट करा था और वहां से इन्सपायर हो कर एक गाना बनाया था। आप उस विडियो को YouTube पर ढूंढ सकते हैं। पता नहीं, जादू उस विडियो में था या गाने में, मैं समझ गया की अगर असली पंजाब का अनुभव करना है तो यहाँ जाना पड़ेगा। समय बीतता गया, 2016 ख़तम हो कर 2017 आ गया। किला रायपुर स्पोर्ट्स फेस्टिवल की तारीखें घोषित हो गई और साथ साथ मेरी ट्रेन टिकट्स भी बुक हो गई।
किला रायपुर कैसे जाना है, क्या करना है, मेरे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं थी। बस ये मालूम था की मुझे लुधियाना पहुचना है और आगे के लिए एक दो बसें बदलनी है। भगवान भरोसे मैं लुधियाना ठीक 5:30 बजे सुबह पहुच गया, जल्दी जल्दी में एक होटल किया और किला रायपुर के लिए गाड़ी ढूंढने चल पड़ा। किला रायपुर, लुधियाना से डेढ़ घंटे की दूरी पर है। यहाँ जाने के लिए ISBT से डेहलों (या ढेलो) तक की बस लेनी पड़ती है, उसके बाद आप टेम्पो के ले कर स्पोर्ट्स ग्राउंड तक पहुच सकते हैं हैं। दिन के 11:30 बजे मैं गाड़िया बदलता हुआ किला रायपुर पंहुचा। एक साहब से आगे का रास्ता पूछा तो जवाब मिला की तालियों की आवाज़ के रस्ते बढ़ते जाओ, मंज़िल अपने आप आ जाएगी। कुछ दूर चलने पर पंजाब पुलिस के अधिकारी दिखने लगे। रास्ता पूछा तो एक अफसर ने मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर स्पोर्ट्स ग्राउंड तक छोड़ दिया।
रूरल ओलिंपिक का स्पोर्ट्स वेन्यू एक छोटा सा स्टेडियम है जो दर्शको से खचाखच भरा हुआ है। मैदान के बीच में कबड्डी का मैच पुरे उफान पर है। दर्शक चिल्ला चिल्ला कर अपनी टीम का मनोबल बढ़ा रहे है। उत्साह ऐसा की रेड बुल के commercials भी फेल हो जाए। मैदान में ही कई सारे पत्रकार मैच को कवर कर रहे हैं। ‘मुझे भी मैदान में जाना है’ ऐसा सोच कर मैं अंदर जाने लगा तो मालूम चला की वहां जाने के लिए प्रेस पास इशू होता है जो मेरे पास है नहीं। थोड़ी देर इधर उधर घूम कर मैं खेतो के रस्ते मैदान में दाखिल हो गया।
अंदर मैदान के बड़े हिस्से में कबड्डी चल रही है। दोनों टीमें एक दूसरे पर भारी पड़ने की तमान कोशिशें कर रहीं है लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा। एक खिलाडी लाइन पार करता है, उसकी आँखे गिद्ध की तरह आस पास का जायज़ा लेती हैं और वो अपने प्रतिद्वंदियों पर टूट पड़ता हैं। उसके प्रतिद्वंदी भी कुछ कम नहीं, जैसे भेडियो का झुण्ड अपने शिकार को घेरता है, वैसे ही वो घेरा बना कर उसको एक कोने में करने की कोशिश करते है। दोनों टीमें एक दूसरे को आउट करने में नाकाम रहती है और खेल चलता रहता है। टीम को सपोर्ट करना ज़रूरी नहीं, वहां इतना उत्साह है की वो अपने आप आपके अंदर संचारित हो जाता है।
अभी कबड्डी का मैच चल ही रहा था की मैदान के दूसरे कोने पर भार उठाने की प्रतियोगिता शुरू हो गई। ये कोई ऐसा वैसा competition नहीं। यहाँ प्रतियोगियों को अपने ऊपर ट्रक के चक्के उठा कर अपना बल साबित करना होगा। एक के बाद प्रतिद्वंदी आते जाते है, कोई चार उठता है कोई छह। एक सोलह साल का लड़का सात चक्के उठा कर बोलता है की वो एक दिन ओलिंपिक में जाएगा। लग रहा था की कोई भी छह – सात चक्को के आगे नहीं जा पाएगा की तभी एक बलवान आ कर अपने ऊपर पांच चक्के डाल लेता है, फिर वो मुस्कुराता है और दोनों हाथो में दो चक्के और उठा लेता है। एक खेल ख़तम होता है और दूसरा शुरू।
किला रायपुर में वो सबकुछ है जो आप असली पंजाब में देखना चाहते हैं। दूर दूर तक हरे भरे खेत हैं, खाने के लिए छोले कुल्छे की रेहड़ियां और पीने के लिए कनस्तर जैसी गिलास में भर भर कर लस्सी। यहाँ फ़ास्ट फ़ूड के नाम पर समोसे और ब्रेड ऑमलेट से ज्यादा कुछ नहीं मिलता और लोगो की सादगी देख कर शहर के वातावरण से चिढ सी मचती है।
शाम हो गई थी, समय था शिकारी कुत्तो की रेस का। पंजाब पुलिस के प्रशिक्षित कुत्ते दूर से ही बड़े खतरनाक लगते हैं। सरे पत्रकार मैदान से कोसो दूर हो जाते हैं। कमेंटेटर्स चिल्ला चिल्ला कर लोगो से मैदान छोर देने की गुज़ारिश करते हैं। इतनी देर में एक सिटी बजती है और सारे कुत्ते भाग खड़े होते हैं। रफ़्तार इतनी तेज़ की मेरे कैमरे में एक ब्लर के अलावा कुछ नहीं आया, सामने खड़े एक पत्रकार महोदय ने अपने बड़े से कैमरा से खींची हुई फोटो दिखाई तो मेरा दिल जल भून कर राख हो गया।
किला रायपुर रूरल ओलंपिक्स सन 1933 में शुरू हुआ था। ग्रेवाल परिवार, जिन्होंने इसकी शुरुआत की थी, आज भी इस समारोह के सबसे बड़े आयोजक हैं। साल दर साल यहाँ खिलाडी अपना परचम लहराने के लिए आते रहे हैं। यहाँ सामान्य और असामान्य खेलो का कोई अंत नहीं। आप एक जगह लॉन्ग जम्प और साइकिल रेस की प्रतियोगिता देखेंगे तो दूसरी तरफ बहादुरों को अपने हाथो से बुलेट को रोकते हुए भी पाएंगे। इंसान तो इंसान, जानवर भी यहाँ अपना हुनर सिद्ध करने के लिए आगे रहते हैं।
दूसरा दिन अपनी रफ़्तार से बढ़ ही रहा था की एक निहंग सिक्खो का दस्ता मैदान में अपने करतब दिखने आ गया। जब उस दस्ते के लड़को और लड़कियों ने अपना कौशल दिखाना शुरू किया तो सबने दांतो तले उँगलियाँ दबा ली। एक के बाद वीर आते गए और असली तलवारो और भालो को लेकर अपने हुनर का प्रदर्शन करते गए। ऐसा लगा की इन सभी को पंख लगे हुए है। पैर ऐसे की ज़मीन पर आते ही नहीं। जितनी देर मैदान में रहे, सब हवा में ही रहे।
तुस्सी सैड हो जाओ, घोडियां विच ब्रेकान नहीं होंदी (जितनी पंजाबी सीखी सब यही उड़ेल दी)।
घुरदौड़ शुरू हो चुकी थी। बिना की सेफ्टी गियर के घुड़सवार अपने अपने घोड़ो को दौड़ते हुए जब मैदान से निकले तो लगा जैसे भूचाल आ गया हो। घुड़सवार चिल्लाते गए, घोड़े भी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में भागते चले गए। जब वो सामने से निकले तो पीछे पीछे एक धुल का गुबार छोड़ते चले गए। इसके बाद खच्चरो की रेस और अंत में निहंगों ने दो दो घोड़ो पर खड़े हो कर अपना करतब दिखाया।
शाम हो गई थी, किला रायपुर का समारोह ख़तम हो गया था। रस्ते में एक जनाब मिलते हैं, फरमाते है की अब इसमें पहले जैसी बात नहीं रही। वक्त के साथ काफी कुछ बदल जाता है। कुछ पीढ़ी के हिसाब से, कुछ समय के हिसाब से। किला रायपुर कब तक मल्टीनेशनल स्पॉन्सर्स के चुंगल से आज़ाद रहता है वो देखने वाली बात होगी। मैं बस इस ख़ुशी के साथ लौट रहा हूँ की मेरी बरसो पुरानी असली पंजाब की तलाश आज जा कर खत्म हो गई।
Information
When: Kila Raipur Sports Festival is held in the month of February. The dates may change after first announcement so book your tickets according to the final announcement.
Where: Kila Raipur is 1.5 hour away from Ludhiana. Take a bus from ISBT to Dehllon from where you can hire a tuktuk till sports venue.
Stay – Kila Raipur doesn’t have many stay options. It is recommended to stay in Ludhiana and commute to and from the festival venue on a daily basis.
You can read the English version of the blog at Wideeyedwanderer.
I find your blog interesting and would like to nominate you for the Liebster Award 2017
kindly see my post to know what to do next thank you
http://traveltrap.in/2017/07/nomination-for-the-liebster-award-2017/
very good review and a honest reflection